लॉकडाउन में राशन की आपूर्ति कर रही खुदरा दुकानों की अहम भूमिका

संकट के समय में देश की अधिकांश ई-कॉमर्स कंपनियां नाकाम साबित हुई हैं

जयपुर, 2 अप्रैल। लॉकडाउन में देश की अधिकांश ई-कॉमर्स कंपनियां सामान की आपूर्ति करने में लगभग नाकाम रही हैं। इसके बावजूद देश में कोई गंभीर संकट पैदा नहीं हुआ है। जयपुर खुदरा विक्रेता संघ के अध्यक्ष विनोद अग्रवाल ने कहा कि इसका श्रेय देश भर में फैली करीब एक करोड़ छोटी-बड़ी दुकानों और तीन लाख से अधिक थोक विक्रेताओं को जाता है। अग्रवाल ने कहा कि ऐसे मौके पर ये पता चल गया है कि देश में ई-कॉमर्स कंपनियों की भूमिका बेहद सीमित है तथा इसे अब तक बढ़ा चढ़ाकर दिखाया जाता रहा है। अग्रवाल कहते हैं कि वैश्विक कंसल्टैंसी फर्म केएसए टेक्नोपैक के मुताबिक ई-कॉमर्स कंपनियां देश भर में सालाना केवल 2.5 अरब डॉलर का खाद्य पदार्थ और परचून का सामान बेचती हैं, जो कि देश में इसके कुल बाजार की तुलना में बेहद मामूली है।

मानसरोवर स्थित गृहलक्ष्मी डिपार्टमेंटल स्टोर के संचालक विकास अग्रवाल ने बताया कि वर्ष 2019-20 में देश में खाद्य और परचून के सामान की सालाना बिक्री 550 अरब डॉलर रही थी। हालांकि शहरी इलाकों में ई-कॉमर्स कंपनियों की बड़ी भूमिका है, लेकिन इसे भी कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ाकर दिखाया जाता है। इन कंपनियों की खाद्य और किराना उत्पादों की 80 फीसदी बिक्री छह महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलूरु और हैदराबाद में होती है, जो करीब 2 अरब डॉलर है। खाद्य और परचून के सामान की कुल खपत में इन छह शहरों की हिस्सेदारी इन उत्पादों के कुल सकल माल मूल्य (जीएमवी) के 35 फीसदी यानी करीब 192 अरब डॉलर है। कुल मिलाकर इन छह शहरों में ई-कॉमर्स कंपनियों की हिस्सेदारी खाद्य पदार्थों और परचून के सामान की सालाना बिक्री का महज 1.04 फीसदी है।

इसमें कोई शक नहीं है कि ई-कॉमर्स कंपनियों की अपनी भूमिका है,  लेकिन संकट की इस घड़ी में लोगों को जरूरी सामान की आपूर्ति जारी रखने में पड़ोस की छोटी-बड़ी दुकानें अहम भूमिका अदा कर रही हैं।’ देश में ई-कॉमर्स का कारोबार महज 20 अरब डॉलर का है, जो वर्ष 2019-20 में देश में परचून की कुल बिक्री का महज 2.4 फीसदी है। कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए देशभर में लागू किए गए लॉकडाउन में लोगों को खाद्य पदार्थों, परचून के सामान और दवाओं की जरूरत होती है। खाद्य और परचून के सामान की आपूर्ति में ई-कॉमर्स की हिस्सेदारी महज 2.5 अरब डॉलर और दवाओं में करीब 10 करोड़ डॉलर है।