सरसों तेल उद्योग एवं किसानों पर आयातित तेल की मार

1 एमएसपी से 800 रुपए प्रति क्विंटल सस्ती बिक रही सरसों

2 देश में हर साल डेढ़ करोड़ टन वनस्पति तेल का आयात

3 विदेशी तेलों पर शीघ्र अंकुश लगाने एवं ड्यूटी बढ़ाने की मांग

जयपुर, 8 मई। देश में खाद्य तेलों के बढ़ते आयात के चलते सरसों तेल उद्योग एवं किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। गौरतलब है कि भारत अपनी घरेलू खाद्य तेल जरूरत का करीब 70 फीसदी आयात से पूरा करता है। भारत हर साल लगभग डेढ़ करोड़ टन वनस्पति तेल (खाद्य एवं अखाद्य) का आयात करता है। मस्टर्ड ऑयल प्रॉड्यूशर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (मोपा) के अध्यक्ष बाबूलाल डाटा एवं उपाध्यक्ष सुरेश चंद जैन ने सरकार से आयातित तेलों पर तुरंत अंकुश लगाने एवं ड्यूटी बढ़ाने की मांग की है।

केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह को भेजे ज्ञापन में डाटा ने कहा कि सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4200 रुपए प्रति क्विंटल है। जबकि मंडियों में सरसों 3400 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास बिक रही है। किसान को एक क्विंटल सरसों पर 800 रुपए का नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि किसान एवं सरसों तेल उद्योग को बचाना है तो पामोलिन तेल के आयात पर शीघ्र रोक लगाई जाए। किसानों की सरसों यदि इसी प्रकार नीचे भावों पर बिकती रही तो वो दिन दूर नहीं जब किसान सरसों की पैदावार से मुंह मोड़ लेगा।

डाटा ने बताया कि केन्द्र सरकार वर्तमान में सोया डीओसी के निर्यात पर 10 प्रतिशत इन्सेंटिव दे रही है। यानी सोया डीओसी का भाव 33 हजार रुपए प्रति टन मानें, तो इस पर सरकार निर्यातकों को 3300 रुपए प्रति टन इन्सेंटिव दे रही है। मोपा ने सरकार से डिमांड की है कि मस्टर्ड डीओसी पर इन्सेंटिव 5 से बढ़ाकर 20 फीसदी किया जाए, जिससे उद्योग को राहत मिल सके।