कविताएं

गुरू की महिमा

 

गुरू की महिमा अपरंपार

गुरू के बिना ना जग और ना संसार

हारे हुए मन में जीतने की आशा जगा दे

कर्म हों मेरे इतने अच्छे कि भगवान

ऐसी शख्सियत को मेरा गुरू बना दे।

शिक्षक के बिना जीवन की परिभाषा कैसी

अध्यापक मेरे द्रोण और मेरी मां सरस्वती जैसी

और यदि मैं अपने गुरू को भगवान का दर्जा दे भी दूं

तो बताओ ना मेरे इस चंचल मन की गलती कैसी।

अनजान है गुरू जात पात के भेद से वो सूरज या

जिसने बर्फ के टुकड़े को नसीहत दी।

 

अदिती अग्रवाल, 8 जग जीवनराम नगर

नीयर पाटनीपुरा इंदौर मध्य प्रदेश

 

जादूगर दादाजी

 

देखो आज एक गजब सा दिन आया है

खुशियों का पिटारा जैसे मुस्कराहट का चिराग लाया है

अब क्या करें भाई बात ही कुछ ऐसी है

जादू की छड़ी घुमाने वाले जादूगर का जन्मदिन आया है।

देखिए करतब घुमाके अपनी जादू की छड़ी

गौर फरमाइएगा बातें बताउंगी अच्छी अच्छी

गाडी चलानी सीखी किसी और से प्रैक्टिस करवाई आपने

धूप में निकलते हम थे और चिंता सताई आपको

बीमारी हुई किसी और को दवाई ढूंढी आपने थी।

जरूरत हो फिर चाहे किसी की भी,

पूरी करने की उसे जिद ठानी आप ने थी।

सुनते हैं मन्नतें पूरी होती हैं मांगते हैं जब टूटते तारे को देखकर

ऐ खुदा सलामत रखना उसे जो मरता है दिन रात हम पर

माना खुदा कि तेरी कश्ती के दीदार बहुत हैं इस पार कुछ

पर उस पार बहुत हैं। रह नहीं सकता तू हर जगह हर किसी के पास

इसलिए तेरे भेजे फरिश्ते हमारे पास हैं।

 

अदिती अग्रवाल, 8 जग जीवनराम नगर

नीयर पाटनीपुरा इंदौर मध्य प्रदेश

 

बहना

यादों के संदूकों पर पड़ी वो धूल मिट गई

दादा दादी की लाड़ली अब बड़ी को गई

समय का पहिया कुछ इस तरह से भागा

अभी पहला ही जन्मदिन मनाया था

कि अब 18वां आ गया।

पापा की लाड़ली होने का तो कुछ ज्यादा ही फायदा उठाया था

जरा सी खरोंच आई नहीं

कि स्टॉपर को दरवाजे से अलग कराया था।

वे भुआ के साथ कितनी ही जगह घूम के आना

पिन्टू फूफाजी का नाम लेकर

मुझे घर पर डरा के बिठा देना

भुआ के हाथ पर सोने वाली

अब तकिये के लिए झगड़ने लगी थी

हमारे घर की नाबालिग अब बालिग को गई थी।

बचपन की खट्‌टी मीठी यादें अब ताजा होने लगी थी

जोड़ना घटाना नहीं आता था जिसे

वो सीए के सवाल करने लगी थी

दांतों को छुपाने वाली अब बत्तीसी दिखाके हंसने लगी थी।

12 बजे उठने वाली अब 6 बजे उठने लगी थी

घरवालों की लाड़ली अब बड़ी हो गई थी।

अब क्या करें साहब समय की रफ्तार ही कुछ इस तरह हो गई

आंखें खोली तो सुबह और बंद की नहीं कि फिर रात हो गई।

 

अदिती अग्रवाल, 8 जग जीवनराम नगर

नीयर पाटनीपुरा इंदौर मध्य प्रदेश