लेबर संकट के चलते राज्य के पशु आहार प्लांट बंद

ट्रक भाड़ा दुगुने से भी ज्यादा वसूल रहे संचालक

जयपुर, 2 अप्रैल। इंडस्ट्रीज चलाने वाले उद्दमियों को इन दिनों ढेरों समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। सरकार ने पशु आहार को आवश्यक वस्तु मानते हुए लॉकडाउन से मुक्त किया हुआ है। मगर फैक्ट्री संचालक चाहते हुए भी अपना प्लांट नहीं चला पा रहे हैं। सर्वप्रथम तो कच्चे माल के दाम 30 से 40 फीसदी तक उछल गए हैं। लेबर अपने-अपने घरों को चली गई है। ट्रक भाड़ा दुगुने से भी ज्यादा वसूला जा रहा है। पेमेंट चैनल सुचारू नहीं है। ऐसी स्थिति में प्लांटों को चलाना मुश्किल हो रहा है। जयपुर मंडी में गुरुवार को बिनौला खल के भाव 2750 से 2800 रुपए प्रति क्विंटल पहुंच गए हैं। इसी प्रकार लाल तिल पपड़ी 3200 रुपए, तिल डली 4700 रुपए, चना चूरी 2850 रुपए तथा चना छिलका 2100 रुपए प्रति क्विंटल पर मजबूत बोले जा रहे हैं। सत्य ट्रेडिंग कंपनी के दिनेश वैद ने बताया कि सरकार ने आरसीडीएफ के पशु आहार कारखानों को लिखित में मंजूरी दी है, जबकि निजी क्षेत्र के प्लांटों को चलाने के लिए मौखिक रूप से कहा है। गौरतलब है कि राजस्थान में 300 से ज्यादा कैटलफीड एवं पौल्ट्री फीड प्लांट हैं।

बड़ी इंडस्ट्रीज हो या छोटे कारोबारी, फिलहाल इनके हालात लगभग एक जैसे हैं। सरकार ने कहा है कि लॉकडाउन के कारण अगर काम बंद है तो भी किसी की सैलरी नहीं रोकी जाएगी। लेकिन कंपनियों की मुश्किल है कि वो सैलरी के लिए पैसे कहां से ला पाएंगी। जानकारों का कहना है कि कोरोनावायरस के बढ़ते संक्रमण और लॉकडाउन के कारण पिछले कुछ समय से कंपनियों की आमदनी ज़ीरो हो गई है। इंडस्ट्री लगातार कह रही हैं कि उन्हें आर्थिक मदद की जरूरत है। इंडस्ट्री की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि लेबर मिनिस्ट्री अनएंप्लॉयमेंट बेनेफिट बढ़ाने की तैयारी में है। लॉकडाउन के कारण मजदूरों की कमी है। ऐसे में सरकार का कहना है कि कोई काम नहीं चल रहा है तो भी मजदूरों का वेतन रोका ना जाए। कुछ प्रोडक्ट कैटेगरी में लेबर की कमी होने के कारण सप्लाई भी डिस्टर्ब हो गई है। सरकार के इस निर्देश पर ज्यादातर कंपनियों का कहना है कि इस संकट में उन पर दोहरी मार पड़ रही है। एकतरफ उनका काम बंद है दूसरी तरफ मजदूरों की सैलरी देने का बोझ।